Mangolpuri, Radheshyam

Cycle Gatha - Institute for democracy and Publicty 2014 - 188p.

इस पुस्तक में कुछ समस्याओं की ओर इशारा है । उनका समाधान जनता अपने तरीके से कर रही है । इनका मुकम्मल समाधान तो नगर निकायों, विविध क्षेत्र के विशेषज्ञों, दृश्य, श्रव्य व प्रिंट मीडिया के कर्मियांे, सरकारी–गैरसरकारी संगठनों और जनता के विभिन्न तबकों के आपसी सहयोग से ही संभव है । इस पुस्तक में टिकाऊ शहर, कामगार और साइकिल के आपसी रिश्तों को जानने–समझने की कोशिश की गई है । इस रिश्ते को समझने के लिए हमने लिखित और वाचिक दोनों तरह की सामग्रियों का अध्ययन किया है । लिखित सामग्री के अंतर्गत पुस्तकें, पत्र–पत्रिकाएं और यद्यपि इस किताब में मुख्यत% ग्यारह तरह के कामों में लगे कामगारों की कहानी दर्ज है, लेकिन इससे दिल्ली में सभी तरह के कामों में लगे कामगारों की झलक मिल जाती है । पर्चे शामिल हैं । वाचिक सामग्री के लिए हमने सामान्य लोगों से लेकर विद्वज्जन तक अनेकानेक लोगों से बातचीत की है और उनके अनुभवों व सुझावों को इसमें शामिल किया है । इस पुस्तक का पहला अध्याय है साइकिल का साम्राज्य । इसमें विश्व–स्तर पर साइकिल की स्थिति का जायजा है । साइकिल अपनी ऐतिहासिक और भौगोलिक यात्रा में कभी अमीरों का तो कभी गरीबों का वाहन रही है । अपने कुछ अन्तर्निहित गुणों के चलते आज यह दुनिया–भर में ‘सबका वाहन’ होने का गौरव प्राप्त कर रही है । -राजेन्द्र रवि


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