Joshi, Rajesh.

Do Panktiyun ke Beech - New Delhi Rajkamal Prakashan - 111p.

राजेश जोशी भाषा को लिरिकल बनाते हुए उस संगीत तक ले जाते हैं, जहाँ से अर्थों की उड़ान शुरू होती है। वह थियेटर की सभी तकनीकें, प्रश्नाधारित संवाद, लय और गीतात्मकता का सीधा इस्तेमाल करते हैं। किंतु कविता की मूल प्रतिज्ञा, सूक्ष्मता और संवेदनीयता से नहीं डिगते। राजेश की कविता की ताकत रेटारिक का अर्थ ही बदल देती है। वह देखते-देखते भाषा को वस्तु और वस्तु को उसकी अन्तर्वस्तु में बदल देती है। भोपाल राजेश की कविताओं में एक आर्गेनिक संरचना की तरह गुँथा है। वह उनकी बोली, बानी, मिज़ाज, मौसम सभी कुछ में व्याप्त है। शायद इसी को लक्ष्य कर ऋतुराज ने लिखा था, वह अपने अनुभव को सिरजते वक्त शोकगीत की लयात्मकता नहीं छोड़ते। लय उनकी कविताओं में सहज भाव से आती है, जैसे कोई कुशल सरोदवादक आलाप में भोपाल राग का विस्तार कर रहा हो! राजेश की राजनीतिक चेतना किताबी नहीं है। उनके मंतव्य स्पष्ट हैं। निष्कर्षों को लेकर दुविधा नहीं है। राजेश की राजनीतिक सम्मान की कविताएँ रेटारिक या स्थूल होने की जगह बारीकी और नफासत का नमूना पेश करती हैं। माक्र्सवाद के संस्पर्श से जिन कवियों ने अपनी समझ और संवेदना को गहरा किया है, राजेश जोशी को उनमें अलग से चिह्नित किया जा सकता है। समय, स्थान और गतियों के अछूते सन्दर्भों से भरी है राजेश की कविता। यहाँ काल का बोध गहरा और आत्मीय है। अपने मनुष्य होने के अहसास और उसे बचाए रखने की जद्दोजहद हैं राजेश की कविताएँ। नरेश सक्सेना की एक टिप्पणी से कुछ पंक्तियाँ।.


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978-81-267-0838-3


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