Sampurna Baal Kavitayen (Hindi)
Material type: TextPublication details: Kitabghar Prakashan 2019Description: 160pISBN: 978-93-83233-84-7Subject(s): Hindi Literature | Hindi poems | Hindi poetry | Poems | PoetryDDC classification: 891.431 Summary: बालस्वरूप राही हिंदी के अत्यंत सम्मानित और दिग्गज बालकवि हैं, जिनकी कविताएँ कई पीढ़ियों से बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी रिझाती आई हैं। कथ्य के अनूठेपन और नदी सरीखी लय के साथ बहती उनकी कविताओं ने बाल कविता का समूचा परिदृश्य ही बदल दिया। सच तो यह है कि राही जी बच्चों के लिए लिखने वाले उन बड़े कवियों में से हैं जिनकी कविताएँ पढ़-पढ़कर एक पीढ़ी जवान हो गई, पर इन कविताओं का जादुई सम्मोहन आज भी वैसा ही है। इन कविताओं में बच्चों के मन, सपनों, इच्छाओं और आकांक्षाओं को बोलचाल की बड़ी ही सीधी-सहज भाषा में ऐसी नायाब अभिव्यक्ति मिली कि आज भी हजारों बच्चे राही जी की बाल कविताओं के मुरीद हैं और उन्हें ढूँढ़-ढूँढ़कर पढ़ते हैं। खासकर ‘चाँद’ पर लिखा गया उनका एक बालगीत तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए लिखने वाले साहित्यिकों में भी उसकी धूम रही और आज भी इसे बाल कविता में एक ‘युगांतकारी’ मोड़ के रूप में याद किया जाता है। चंदा मामा की पुरानी शान और ठाट-बाट यहाँ गायब है और बच्चा कुछ-कुछ ढिठाई से उसकी ‘उधार की चमक-दमक’ पर व्यंग्य करता है। यह नए जमाने के बदले हुए बच्चे का गीत है, जो चंदा मामा पर पारंपरिक ढंग से लिखे गए सैकड़ों बालगीतों से अलग और शायद सबसे मूल्यवान भी है।Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Children's Books | Ektara Trust | 891.431/RAH(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 4651 |
बालस्वरूप राही हिंदी के अत्यंत सम्मानित और दिग्गज बालकवि हैं, जिनकी कविताएँ कई पीढ़ियों से बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी रिझाती आई हैं। कथ्य के अनूठेपन और नदी सरीखी लय के साथ बहती उनकी कविताओं ने बाल कविता का समूचा परिदृश्य ही बदल दिया। सच तो यह है कि राही जी बच्चों के लिए लिखने वाले उन बड़े कवियों में से हैं जिनकी कविताएँ पढ़-पढ़कर एक पीढ़ी जवान हो गई, पर इन कविताओं का जादुई सम्मोहन आज भी वैसा ही है। इन कविताओं में बच्चों के मन, सपनों, इच्छाओं और आकांक्षाओं को बोलचाल की बड़ी ही सीधी-सहज भाषा में ऐसी नायाब अभिव्यक्ति मिली कि आज भी हजारों बच्चे राही जी की बाल कविताओं के मुरीद हैं और उन्हें ढूँढ़-ढूँढ़कर पढ़ते हैं। खासकर ‘चाँद’ पर लिखा गया उनका एक बालगीत तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए लिखने वाले साहित्यिकों में भी उसकी धूम रही और आज भी इसे बाल कविता में एक ‘युगांतकारी’ मोड़ के रूप में याद किया जाता है। चंदा मामा की पुरानी शान और ठाट-बाट यहाँ गायब है और बच्चा कुछ-कुछ ढिठाई से उसकी ‘उधार की चमक-दमक’ पर व्यंग्य करता है। यह नए जमाने के बदले हुए बच्चे का गीत है, जो चंदा मामा पर पारंपरिक ढंग से लिखे गए सैकड़ों बालगीतों से अलग और शायद सबसे मूल्यवान भी है।
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