Aye Ladki

By: Sobti, KrishnaMaterial type: TextTextPublication details: Rajkamal Prakashan 2018Description: 88pISBN: 978-81-267-1609-8Subject(s): Fiction | Hindi Literature | NovelDDC classification: 891.433 Summary: ऐ लड़की यह एक लंबी कहानी है - यों तो मृत्यु की प्रतीक्षा में एक बूढ़ी स्त्री की, पर वह फैली हुई है उसकी समूची ज़िंदगी के आर-पार, जिसे मरने के पहले अपनी अचूक जिजीविषा से वह याद करती है। उसमें घटनाएँ, बिंब, तसवीरें और यादें अपने सारे ताप के साथ पुनरवतरित होते चलते हैं - नज़दीक आती मृत्यु का उसमें कोई भय नहीं है बल्कि मानो फिर से घिरती-घुमड़ती सारी ज़िंदगी एक निर्भय न्योता है कि वह आए, उसके लिए पूरी तैयारी है। पर यह तैयारी अपने मोह और स्मृतियों, अपनी ज़िद और अनुभवों का पल्ला झाड़कर किसी वैरागी सादगी में नहीं है बल्कि पिछले किये-धरे को एकबारगी अपने साथ लेकर मोह के बीचोबीच धँसते हुए प्रतीक्षा है - एक भयातुर समय में, जिसमें हम जीवन और मृत्यु, दोनों से लगातार डरते रहते हैं, यह कथा निर्भय जिजीविषा का महाकाव्य है। उसमें सहज स्वीकार, उसकी विडंबना और उसकी ट्रैजीकॉमिक अवस्थिति का पूरा और तीखा अवसाद है। यह कथा अपनी स्मृति में पूरी तरह डूबी स्त्री का जगत् को छोड़ते हुए अपनी बेटी को दिया निर्मोह का उपहार है। राग और विराग के बीच चढ़ती-उतरती घाटी को भाषा की चमक में पार करते हुए कोई यह सब जंजाल छोड़कर चला जाने वाला है। लेकिन तब भी यहाँ सब कुछ ठहरा हुआ है: भाषा में। कोई भी कृति सबसे पहले और सबके अंत में भाषा में ही रहती है - उसी में उसका सच मिलता, चरितार्थ और विलीन होता है। कथा-भाषा का इस कहानी में एक नया उत्कर्ष है। उसमें होने, डूबने-उतराने, गढ़ने-रचने की कविता है - उसमें अपनी हालत को देखता-परखता, जीवन के अनेक अप्रत्याशित क्षणों को सहेजता और सच्चाई की सख्ती को बखानता गद्य है। प्रूस्त ने कहीं लिखा है कि लेखक निरंतर सामान्य चेतना और विक्षिप्तता की सरहद के आर-पार तस्करी करता है। ऐ लड़की कविता के इलाक़ेे से गद्य का, मृत्यु के क्षेत्र से जीवन का चुपचाप उठाकर लाया-सहेजा गया अनुभव है।
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ऐ लड़की यह एक लंबी कहानी है - यों तो मृत्यु की प्रतीक्षा में एक बूढ़ी स्त्री की, पर वह फैली हुई है उसकी समूची ज़िंदगी के आर-पार, जिसे मरने के पहले अपनी अचूक जिजीविषा से वह याद करती है। उसमें घटनाएँ, बिंब, तसवीरें और यादें अपने सारे ताप के साथ पुनरवतरित होते चलते हैं - नज़दीक आती मृत्यु का उसमें कोई भय नहीं है बल्कि मानो फिर से घिरती-घुमड़ती सारी ज़िंदगी एक निर्भय न्योता है कि वह आए, उसके लिए पूरी तैयारी है। पर यह तैयारी अपने मोह और स्मृतियों, अपनी ज़िद और अनुभवों का पल्ला झाड़कर किसी वैरागी सादगी में नहीं है बल्कि पिछले किये-धरे को एकबारगी अपने साथ लेकर मोह के बीचोबीच धँसते हुए प्रतीक्षा है - एक भयातुर समय में, जिसमें हम जीवन और मृत्यु, दोनों से लगातार डरते रहते हैं, यह कथा निर्भय जिजीविषा का महाकाव्य है। उसमें सहज स्वीकार, उसकी विडंबना और उसकी ट्रैजीकॉमिक अवस्थिति का पूरा और तीखा अवसाद है। यह कथा अपनी स्मृति में पूरी तरह डूबी स्त्री का जगत् को छोड़ते हुए अपनी बेटी को दिया निर्मोह का उपहार है। राग और विराग के बीच चढ़ती-उतरती घाटी को भाषा की चमक में पार करते हुए कोई यह सब जंजाल छोड़कर चला जाने वाला है। लेकिन तब भी यहाँ सब कुछ ठहरा हुआ है: भाषा में। कोई भी कृति सबसे पहले और सबके अंत में भाषा में ही रहती है - उसी में उसका सच मिलता, चरितार्थ और विलीन होता है। कथा-भाषा का इस कहानी में एक नया उत्कर्ष है। उसमें होने, डूबने-उतराने, गढ़ने-रचने की कविता है - उसमें अपनी हालत को देखता-परखता, जीवन के अनेक अप्रत्याशित क्षणों को सहेजता और सच्चाई की सख्ती को बखानता गद्य है। प्रूस्त ने कहीं लिखा है कि लेखक निरंतर सामान्य चेतना और विक्षिप्तता की सरहद के आर-पार तस्करी करता है। ऐ लड़की कविता के इलाक़ेे से गद्य का, मृत्यु के क्षेत्र से जीवन का चुपचाप उठाकर लाया-सहेजा गया अनुभव है।

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