Malgudi Ka Aadamkhor

By: Narayan, R.KMaterial type: TextTextPublication details: New Delhi Rajpal and Sons 2010Description: 192pISBN: 978-8170288688Subject(s): Adventures | Children's stories | English Literature-Translated | Fiction | Hindi Literature | StoriesDDC classification: 891.43 Summary: "गोलगप्पों की तरह चटपटा 'मालगुडी का आदमख़ोर' उपन्यास, कहानी लेखन के विभिन्न तत्त्वों का शानदार मिश्रण है। हास्य और गंभीरता के चरम का ऐसा मेल और कहीं भी मिलना मुश्किल है...आर. के. नारायण के लेखन की खास बात उसका सहज और स्पष्ट होना है..." - टाइम्स लिटरेरी सप्लिमेंट, लंदन विश्व प्रसिद्ध 'मालगुडी की कहानियां' की तरह ही आर. के. नारायण के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि भी उनका प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी है। यहां रहने वाले नटराज की शांत जि़ंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उसकी प्रिंटिंग प्रेस की ऊपरी मंजि़ल पर वासु डेरा डाल लेता है। वासु अव्वल दर्जे का गुंडा और फसादी है। उसका पेशा मरे हुए जानवरों की खाल में भूसा भर उन्हें सजावटी रूप देना है, इसलिए वह खुलेआम उनका शिकार करता है। यहां तक कि नटराज की प्यारी बिल्ली भी वासु की भेंट चढ़ जाती है और वह कुछ नहीं कर पाता। बड़े शिकार की तलाश में वासु मंदिर के हाथी पर निशाना साधने की फिराक में है। आखिरकार, नटराज भी वासु को सबक सिखाने की ठान लेता है और बड़ी होशियारी और सावधानी से एक-एक कर उसकी सभी चालों को नाकाम कर देता है। मंदिर में नृत्य करने वाली दिलकश रंगी और नटराज का निजी सहायक शास्त्री 'मालगुडी का आदमखोर' को और भी रंगीन और दिलचस्प बनाते हैं। उनकी बातें और हरकतें भीतर तक गुदगुदा देती हैं।
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"गोलगप्पों की तरह चटपटा 'मालगुडी का आदमख़ोर' उपन्यास, कहानी लेखन के विभिन्न तत्त्वों का शानदार मिश्रण है। हास्य और गंभीरता के चरम का ऐसा मेल और कहीं भी मिलना मुश्किल है...आर. के. नारायण के लेखन की खास बात उसका सहज और स्पष्ट होना है..." - टाइम्स लिटरेरी सप्लिमेंट, लंदन विश्व प्रसिद्ध 'मालगुडी की कहानियां' की तरह ही आर. के. नारायण के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि भी उनका प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी है। यहां रहने वाले नटराज की शांत जि़ंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उसकी प्रिंटिंग प्रेस की ऊपरी मंजि़ल पर वासु डेरा डाल लेता है। वासु अव्वल दर्जे का गुंडा और फसादी है। उसका पेशा मरे हुए जानवरों की खाल में भूसा भर उन्हें सजावटी रूप देना है, इसलिए वह खुलेआम उनका शिकार करता है। यहां तक कि नटराज की प्यारी बिल्ली भी वासु की भेंट चढ़ जाती है और वह कुछ नहीं कर पाता। बड़े शिकार की तलाश में वासु मंदिर के हाथी पर निशाना साधने की फिराक में है। आखिरकार, नटराज भी वासु को सबक सिखाने की ठान लेता है और बड़ी होशियारी और सावधानी से एक-एक कर उसकी सभी चालों को नाकाम कर देता है। मंदिर में नृत्य करने वाली दिलकश रंगी और नटराज का निजी सहायक शास्त्री 'मालगुडी का आदमखोर' को और भी रंगीन और दिलचस्प बनाते हैं। उनकी बातें और हरकतें भीतर तक गुदगुदा देती हैं।

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