Premchand ke Ghar Mein
Material type: TextPublication details: Roshnai Prakashan, Kanchrapada, West Bengal 2018Description: 272pISBN: 81-88742-08-2Subject(s): Biographies | Biography | Hindi Literature | Munshi Premchand | SansmaranDDC classification: 928 Summary: पुस्तक के लिखने में मैंने केवल एक बात का अधिक से अधिक ध्यान रखा है और वह है ईमानदारी, सचाई । घटनाएँ जैसे–जैसे याद आती गयी हैं, मैं उन्हें लिखती गयी हूँ । उन्हें सजाने का मुझे न तो अवकाश था और न साहस । इसलिए हो सकता है कहीं–कहीं पहले की घटनाएँ बाद में और बाद की घटनाएँ पहले आ गयी हों । यह भी हो सकता है कि अनजाने ही में मैंने किसी घटना का जि’क्र बार–बार कर दिया हो । ऐसी भूलों को पाठक क्षमा करेंगे । साहित्यिकता के भूखे पाठकों को सम्भव है इस पुस्तक से कुछ निराशा हो क्योंकि साहित्यिकता मेरे अन्दर ही नहीं है । पर मेरी ईमानदारी उनके दिल के अन्दर घर करेगी, यह मैं जानती हूँय क्योंकि मैंने किसी बात को बढ़ाकर कहने की कोशिश नहीं है गोकि तीस साल से ऊपर तक जि’न्दगी के हर दु%ख और सुख में उनकी साथी होने के नाते मैं जानती हूँ कि अगर उनके गुणों का बखान करने में मैं तिल का ताड़ भी बनाती, तो भी उनके चरित्र की विशालता का पूरा परिचय न मिल पाता । पर मैंने तो सभी बातें, बगैर अपनी तरफ’ से कुछ भी मिलाये, ज्यों की त्यों कह दी हैं ।Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 928/PRE(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 2910 |
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928/POR(H) Alexandra Kolentai: Samajvad mai Stree Purush Samta Ka Sangharsh | 928/PRA(H) Chekhov | 928/PRA(H) Dhoop Mein Nange Paon: Andaaz Kissagoi ka aur Jevantta Kathetar ki | 928/PRE(H) Premchand ke Ghar Mein | 928/PRI(H) Panch Jeevaniyan | 928/PRI(H) Lenin Katha | 928/RAN(H) Marquez ki Kahani |
पुस्तक के लिखने में मैंने केवल एक बात का अधिक से अधिक ध्यान रखा है और वह है ईमानदारी, सचाई । घटनाएँ जैसे–जैसे याद आती गयी हैं, मैं उन्हें लिखती गयी हूँ । उन्हें सजाने का मुझे न तो अवकाश था और न साहस । इसलिए हो सकता है कहीं–कहीं पहले की घटनाएँ बाद में और बाद की घटनाएँ पहले आ गयी हों । यह भी हो सकता है कि अनजाने ही में मैंने किसी घटना का जि’क्र बार–बार कर दिया हो । ऐसी भूलों को पाठक क्षमा करेंगे । साहित्यिकता के भूखे पाठकों को सम्भव है इस पुस्तक से कुछ निराशा हो क्योंकि साहित्यिकता मेरे अन्दर ही नहीं है । पर मेरी ईमानदारी उनके दिल के अन्दर घर करेगी, यह मैं जानती हूँय क्योंकि मैंने किसी बात को बढ़ाकर कहने की कोशिश नहीं है गोकि तीस साल से ऊपर तक जि’न्दगी के हर दु%ख और सुख में उनकी साथी होने के नाते मैं जानती हूँ कि अगर उनके गुणों का बखान करने में मैं तिल का ताड़ भी बनाती, तो भी उनके चरित्र की विशालता का पूरा परिचय न मिल पाता । पर मैंने तो सभी बातें, बगैर अपनी तरफ’ से कुछ भी मिलाये, ज्यों की त्यों कह दी हैं ।
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