Kavi ne Kaha: Chuni Hui Kavitayen

By: Shukla, SriprakashMaterial type: TextTextPublication details: New Delhi KitabGhar Prakashan 2016Description: 136pISBN: 978-93-85054-62-4Subject(s): Hindi Literature | Hindi poems | Hindi poetry | Poems | PoetryDDC classification: 891.431 Summary: श्रीप्रकाश शुक्ल हिंदी कविता के प्रतिष्ठित कवि हैं। इनके पहले कविता संग्रह ‘अपनी तरह के लोग’ (1999) से लेकर पाँचवें कविता संग्रह ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ (2014) तक की कविताओं से गुजरकर कविता प्रेमियों को काव्य स्वाद का सुखद अहसास होता है। अपनी कविताओं में ये बिना किसी नारेबाजी व आयातित विमर्श का हौवा खड़ा किए सधे हुए स्वर में सामाजिक विसंगतियों, क्रूरताओं, धार्मिक ढकोसलों, आर्थिक पराभवों और सांस्कृतिक क्षरण पर सीधे वार करते हैं। इनकी कविता की दुनिया में राजनीति व विचारधारा की एक पक्षधर दुनिया गुँथी हुई होती है जिसमें गरीब, पीड़ित व उपेक्षित वर्ग के प्रति गहरी रागात्मक चेतना मौजूद है। लेकिन उपर्युक्त बातों के साथ-साथ जिस वैशिष्ट्य के कारण श्रीप्रकाश शुक्ल हिंदी कविता में ज्यादा चर्चित हैं वह हैं इनकी विषयगत वैविध्यता और गहरी लोकोन्मुखता। अपनी कविताओं में वे महज लोक का चित्रण नहीं करते बल्कि लोक के क्षरण के कारणों की शिनाख्त भी करते हैं। नवउदारवाद और पूँजीवादी शक्तियों के आक्रमण, दमन, शोषण और चालाकियों का प्रतिरोध करने वाली इनकी कविता जनोन्मुखी व लोकोन्मुखी तो है ही, इसमें स्थानीयता के साथ वैश्विकता के तत्त्व भी समाहित हैं जहाँ पुराने के साथ परंपरा से रिश्ते रखने वाला नया समाज तो है ही, एक आधुनिक चेतना भी मौजूद है। इसी के साथ गौरतलब है कि प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य के चित्रों से भरपूर कवि का कविता संसार विविध वर्णों से युक्त है जहाँ कविता की धार अपनी भाषिक व्यंजना के रेडिकल भावभूमि पर विकसित होती है। यहाँ कहते हुए ख़ुशी होती है कि इस कवि ने अपने को कहीं रिपीट नहीं किया है और इसी कारण इनकी कविता बहुवस्तुस्पर्शी उध्र्वमुखी चेतना से संपन्न है जो एक समर्थ कवि का लक्षण है। भाषा की सादगी और बिंबों की निजता इनके कवि- स्वभाव की विलक्षण विशेषता है। कह सकते हैं कि भाषा के लोक स्वीकृत विन्यास को चुनौती देती इनकी कविताओं में व्यंग्य व वक्रता का एक सघन संसार उपस्थित होता है जहाँ भाषायी मुखरता के साथ एक आत्मसंवादी स्वर का औदात्य भी मिलता है जो इनकी कविताओं को रेडिकल बनाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कविता का यह संचयन कवि की काव्य संपदा और उनकी सामर्थ्य से अपने पाठकों को परिचित कराने में समर्थ होगा। –अरुण होता
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Ektara Trust
891.431/SHU(H) (Browse shelf(Opens below)) Available 2297
Total holds: 0

श्रीप्रकाश शुक्ल हिंदी कविता के प्रतिष्ठित कवि हैं। इनके पहले कविता संग्रह ‘अपनी तरह के लोग’ (1999) से लेकर पाँचवें कविता संग्रह ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ (2014) तक की कविताओं से गुजरकर कविता प्रेमियों को काव्य स्वाद का सुखद अहसास होता है। अपनी कविताओं में ये बिना किसी नारेबाजी व आयातित विमर्श का हौवा खड़ा किए सधे हुए स्वर में सामाजिक विसंगतियों, क्रूरताओं, धार्मिक ढकोसलों, आर्थिक पराभवों और सांस्कृतिक क्षरण पर सीधे वार करते हैं। इनकी कविता की दुनिया में राजनीति व विचारधारा की एक पक्षधर दुनिया गुँथी हुई होती है जिसमें गरीब, पीड़ित व उपेक्षित वर्ग के प्रति गहरी रागात्मक चेतना मौजूद है। लेकिन उपर्युक्त बातों के साथ-साथ जिस वैशिष्ट्य के कारण श्रीप्रकाश शुक्ल हिंदी कविता में ज्यादा चर्चित हैं वह हैं इनकी विषयगत वैविध्यता और गहरी लोकोन्मुखता। अपनी कविताओं में वे महज लोक का चित्रण नहीं करते बल्कि लोक के क्षरण के कारणों की शिनाख्त भी करते हैं। नवउदारवाद और पूँजीवादी शक्तियों के आक्रमण, दमन, शोषण और चालाकियों का प्रतिरोध करने वाली इनकी कविता जनोन्मुखी व लोकोन्मुखी तो है ही, इसमें स्थानीयता के साथ वैश्विकता के तत्त्व भी समाहित हैं जहाँ पुराने के साथ परंपरा से रिश्ते रखने वाला नया समाज तो है ही, एक आधुनिक चेतना भी मौजूद है। इसी के साथ गौरतलब है कि प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य के चित्रों से भरपूर कवि का कविता संसार विविध वर्णों से युक्त है जहाँ कविता की धार अपनी भाषिक व्यंजना के रेडिकल भावभूमि पर विकसित होती है। यहाँ कहते हुए ख़ुशी होती है कि इस कवि ने अपने को कहीं रिपीट नहीं किया है और इसी कारण इनकी कविता बहुवस्तुस्पर्शी उध्र्वमुखी चेतना से संपन्न है जो एक समर्थ कवि का लक्षण है। भाषा की सादगी और बिंबों की निजता इनके कवि- स्वभाव की विलक्षण विशेषता है। कह सकते हैं कि भाषा के लोक स्वीकृत विन्यास को चुनौती देती इनकी कविताओं में व्यंग्य व वक्रता का एक सघन संसार उपस्थित होता है जहाँ भाषायी मुखरता के साथ एक आत्मसंवादी स्वर का औदात्य भी मिलता है जो इनकी कविताओं को रेडिकल बनाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कविता का यह संचयन कवि की काव्य संपदा और उनकी सामर्थ्य से अपने पाठकों को परिचित कराने में समर्थ होगा। –अरुण होता

Hindi

There are no comments on this title.

to post a comment.

Click on an image to view it in the image viewer

Ektara Trust. All Rights Reserved. © 2022 | Connect With Us on Social Media
Implemented and Customised by KMLC

Powered by Koha