Kuch Purvagraha

By: Vajpeyi, AshokMaterial type: TextTextPublication details: New Delhi Rajkamal Prakashan 1984Description: 207pSubject(s): Hindi Literature | Hindi poems | Hindi poetry | Literary Critcism | Poems | PoetryDDC classification: 891.431 Summary: पिछले वर्षो में हिंदी आलोचना में जो नाम छाए रहे हैं उनमे एक नाम निश्चय ही अशोक वाजपेयी का है कविता के लिए उनका पूर्वग्रह अब कुख्यात ही है ! उन्होंने उसकी आलोचना, प्रकाशन और प्रसार के लिए जितने व्यापक और सुचिंतित रूप से काम किया है उतना इस दौरान शायद ही किसी ने किया हो ! 1970 में उनकी पहली आलोचना-पुस्तक फिलहाल ने हिंदी आलोचना को तेजी और सार्थक आलोचना-भाषा दी थी जिसका व्यापक प्रभाव आज तक देखा जा सकता है ! फिलहाल के चार संस्करण निकलना इस बात का प्रमाण है कि समकालीन कविता की आलोचना में उसे एक उद्गम-ग्रन्थ की मान्यता मिली है ! इस बीच अशोक वाजपेयी ने 1974 से भोपाल से बहुचर्चित आलोचना द्वामसिक 'पूर्वग्रह' का संपादन और प्रकाशन आरम्भ किया ! हिंदी की समकालीन साहित्य-संस्कृति में इस प्रयत्न का ऐतिहासिक महत्त्व है ! इस पुस्तक की अधिकांश सामग्री 'पूर्वग्रह' में ही प्रकाशित हुई है ! कम लिखकर भी कारगर हस्तक्षेप कर पाने में वे सक्षम हैं, यह इसका प्रमाण है ! कविता, साहित्य और संस्कृति के लिए अपनी गहरी आसक्ति को अशोक वाजपेयी असाधारण स्पष्टता और सूक्ष्म सम्वेदंशेलता के साथ व्यक्त करते हैं हालाँकि हर हालत में अपने को ही सही मानने का उन्हें कोई मुगालता नहीं है ! उनकी आलोचना आज की सृजनात्मकता को समझने और आगे बढाने का एक उत्कट और विचारसंपन्न प्रयत्न है ! वे जो प्रश्न उठाते हैं या चुनौतियाँ सामने रखते हैं वे आज की परिश्थितियों में केन्द्रीय हैं और उन्हें नजरअंदाज करना संभव नहीं है !
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पिछले वर्षो में हिंदी आलोचना में जो नाम छाए रहे हैं उनमे एक नाम निश्चय ही अशोक वाजपेयी का है कविता के लिए उनका पूर्वग्रह अब कुख्यात ही है ! उन्होंने उसकी आलोचना, प्रकाशन और प्रसार के लिए जितने व्यापक और सुचिंतित रूप से काम किया है उतना इस दौरान शायद ही किसी ने किया हो ! 1970 में उनकी पहली आलोचना-पुस्तक फिलहाल ने हिंदी आलोचना को तेजी और सार्थक आलोचना-भाषा दी थी जिसका व्यापक प्रभाव आज तक देखा जा सकता है ! फिलहाल के चार संस्करण निकलना इस बात का प्रमाण है कि समकालीन कविता की आलोचना में उसे एक उद्गम-ग्रन्थ की मान्यता मिली है ! इस बीच अशोक वाजपेयी ने 1974 से भोपाल से बहुचर्चित आलोचना द्वामसिक 'पूर्वग्रह' का संपादन और प्रकाशन आरम्भ किया ! हिंदी की समकालीन साहित्य-संस्कृति में इस प्रयत्न का ऐतिहासिक महत्त्व है ! इस पुस्तक की अधिकांश सामग्री 'पूर्वग्रह' में ही प्रकाशित हुई है ! कम लिखकर भी कारगर हस्तक्षेप कर पाने में वे सक्षम हैं, यह इसका प्रमाण है ! कविता, साहित्य और संस्कृति के लिए अपनी गहरी आसक्ति को अशोक वाजपेयी असाधारण स्पष्टता और सूक्ष्म सम्वेदंशेलता के साथ व्यक्त करते हैं हालाँकि हर हालत में अपने को ही सही मानने का उन्हें कोई मुगालता नहीं है ! उनकी आलोचना आज की सृजनात्मकता को समझने और आगे बढाने का एक उत्कट और विचारसंपन्न प्रयत्न है ! वे जो प्रश्न उठाते हैं या चुनौतियाँ सामने रखते हैं वे आज की परिश्थितियों में केन्द्रीय हैं और उन्हें नजरअंदाज करना संभव नहीं है !

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