Upanyas ki Nai Parampara
Material type: TextPublication details: Vanmali Srijan Peeth 2011Description: 38pSubject(s): Hindi Literature | Literary Criticism | Vanmali Katha SammanDDC classification: 891.43 Summary: कला को विचारधारा में तब्दील नहीं किया जा सकता, बस उसका विचारधारा से एक निश्चित संबंध होता है। विचारधारा असल में ऐसे काल्पनिक तरीकों का चयन करती है जिनके माध्यम से आदमी वास्तविक विश्व को अनुभव करता है और साहित्य भी यही काम करता है- सैद्धांतिक विवरण देने के बदले यह बताता है कि एक विशेष परिस्थिति में रहने के क्या अनुभव हैं। लेकिन कला सिर्फ उस अनुभव को परावर्तित नहीं करती, वह विचारधारा के भीतर रहती है लेकिन उससे दूरी भी हासिल करती है, उस बिन्दु तक जहाँ से कि वह हमें विचारधारा को ‘महसूसने’ और ‘समझने’ का अवसर प्रदान करती है। ऐसा करते समय कला हमें सत्य तक पहुँचने में मदद नहीं करती जिसे विचारधारा ने छुपा रखा था क्योंकि सत्य या ज्ञान का अर्थ वैज्ञानिक सत्य से है विज्ञान और कला में ये फर्क नहीं है कि वे अलग-अलग वस्तुओं या विषयों से संबंध रखते हैं बल्कि यह है कि वे उन्हीं विषयों से अलग-अलग तरह का व्यवहार करते हैं। विज्ञान हमें किसी परिस्थिति के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है जबकि कला इस परिस्थिति में होने वाली अनुभूति का, जो विचारधारा के समतुल्य है। ऐसा करते हुए वह हमें विचारधारा के ‘वास्तविक’ चरित्र से अवगत कराता है और इस तरह हमें उसकी संपूर्ण समझ की ओर ले चलता है जो इस विचारधारा का भी वैज्ञानिक ज्ञान है। भ्रांति, जो एक मनुष्य का सामान्य विचारधारात्मक अनुभव होता है, वह आधार है जहाँ से लेखक शुरू करता है। लेकिन उस पर काम करते हुए वह उसे एक नया स्वरूप और ढाँचा प्रदान करता है। इस तरह विचारधारा को एक सुस्पष्ट रूप देते हुए एवं उसे कथा के भीतर परिमित बनाते हुए कला अपने आप को विचारधारा से दूर करती है और इस तरह विचारधारा की सीमा भी स्पष्ट करती है।Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 891.43/CHO(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 1813 |
कला को विचारधारा में तब्दील नहीं किया जा सकता, बस उसका विचारधारा से एक निश्चित संबंध होता है। विचारधारा असल में ऐसे काल्पनिक तरीकों का चयन करती है जिनके माध्यम से आदमी वास्तविक विश्व को अनुभव करता है और साहित्य भी यही काम करता है- सैद्धांतिक विवरण देने के बदले यह बताता है कि एक विशेष परिस्थिति में रहने के क्या अनुभव हैं। लेकिन कला सिर्फ उस अनुभव को परावर्तित नहीं करती, वह विचारधारा के भीतर रहती है लेकिन उससे दूरी भी हासिल करती है, उस बिन्दु तक जहाँ से कि वह हमें विचारधारा को ‘महसूसने’ और ‘समझने’ का अवसर प्रदान करती है। ऐसा करते समय कला हमें सत्य तक पहुँचने में मदद नहीं करती जिसे विचारधारा ने छुपा रखा था क्योंकि सत्य या ज्ञान का अर्थ वैज्ञानिक सत्य से है विज्ञान और कला में ये फर्क नहीं है कि वे अलग-अलग वस्तुओं या विषयों से संबंध रखते हैं बल्कि यह है कि वे उन्हीं विषयों से अलग-अलग तरह का व्यवहार करते हैं। विज्ञान हमें किसी परिस्थिति के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है जबकि कला इस परिस्थिति में होने वाली अनुभूति का, जो विचारधारा के समतुल्य है। ऐसा करते हुए वह हमें विचारधारा के ‘वास्तविक’ चरित्र से अवगत कराता है और इस तरह हमें उसकी संपूर्ण समझ की ओर ले चलता है जो इस विचारधारा का भी वैज्ञानिक ज्ञान है। भ्रांति, जो एक मनुष्य का सामान्य विचारधारात्मक अनुभव होता है, वह आधार है जहाँ से लेखक शुरू करता है। लेकिन उस पर काम करते हुए वह उसे एक नया स्वरूप और ढाँचा प्रदान करता है। इस तरह विचारधारा को एक सुस्पष्ट रूप देते हुए एवं उसे कथा के भीतर परिमित बनाते हुए कला अपने आप को विचारधारा से दूर करती है और इस तरह विचारधारा की सीमा भी स्पष्ट करती है।
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