Chhinnamasta
Material type: TextPublication details: New Delhi Rajkamal Prakashan 2010Description: 192pISBN: 978-81-267-0253-4Subject(s): Fiction | Hindi LiteratureDDC classification: 891.433 Summary: स्त्री-जीवन की विडम्बनाओं, उसके शोषण, उत्पीड़न और संघर्षों का जीवन्त दस्तावेज़ है प्रभा खेतान का उपन्यास – ‘छिन्नमस्ता’। उपन्यास की केन्द्रीय पात्र प्रिया का सृजन करते हुए प्रभा खेतान ने ख़ूबी के साथ यह स्थापित किया है कि स्त्री चाहे तो सम्पूर्ण विषम परिस्थितियों और विडम्बनाओं को लाँघकर अपने लिए ऐसा मार्ग तलाश सकती है जो उसे सफलता के शीर्ष तक ले जाए। यह उपन्यास शोषित महिलाओं के लिए प्रेरक है। इसमें पीड़ित स्त्रियों को सम्बल प्रदान करने की क्षमता है। ‘छिन्नमस्ता’ युगों से प्रताड़ित नारी के शोषण के विविध आयामों को परत-दर-परत उघाड़नेवाला उपन्यास है जो यह रेखांकित करता है कि घर की सुरक्षित दीवारों के पीछे भी नायिका प्रिया की अस्मत लूट ली जाती है। किन्तु औरत की उत्कट जिजीविषा का परिचय भी ‘छिन्नमस्ता’ में निहित हैं जिसमें प्रभा जैसी शोषित नारी भी अन्ततः अपनी पहचान अर्जित करती है और अपनी सम्पूर्ण संवेदनशीलता के साथ जीती-जागती हुई अपना स्वतन्त्र व्यवसाय स्थापित करती है। घर के सीमित दायरे से मुक्त हो अपने सपनों को सुदूर क्षितिज तक विस्तृत का संघर्ष-स्वप्न है – ‘छिन्नमस्ता’।Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 891.433/KHA(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 1726 |
स्त्री-जीवन की विडम्बनाओं, उसके शोषण, उत्पीड़न और संघर्षों का जीवन्त दस्तावेज़ है प्रभा खेतान का उपन्यास – ‘छिन्नमस्ता’। उपन्यास की केन्द्रीय पात्र प्रिया का सृजन करते हुए प्रभा खेतान ने ख़ूबी के साथ यह स्थापित किया है कि स्त्री चाहे तो सम्पूर्ण विषम परिस्थितियों और विडम्बनाओं को लाँघकर अपने लिए ऐसा मार्ग तलाश सकती है जो उसे सफलता के शीर्ष तक ले जाए। यह उपन्यास शोषित महिलाओं के लिए प्रेरक है। इसमें पीड़ित स्त्रियों को सम्बल प्रदान करने की क्षमता है। ‘छिन्नमस्ता’ युगों से प्रताड़ित नारी के शोषण के विविध आयामों को परत-दर-परत उघाड़नेवाला उपन्यास है जो यह रेखांकित करता है कि घर की सुरक्षित दीवारों के पीछे भी नायिका प्रिया की अस्मत लूट ली जाती है। किन्तु औरत की उत्कट जिजीविषा का परिचय भी ‘छिन्नमस्ता’ में निहित हैं जिसमें प्रभा जैसी शोषित नारी भी अन्ततः अपनी पहचान अर्जित करती है और अपनी सम्पूर्ण संवेदनशीलता के साथ जीती-जागती हुई अपना स्वतन्त्र व्यवसाय स्थापित करती है। घर के सीमित दायरे से मुक्त हो अपने सपनों को सुदूर क्षितिज तक विस्तृत का संघर्ष-स्वप्न है – ‘छिन्नमस्ता’।
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