Satrah Kahaniyan
Material type: TextPublication details: Bhartiya Gyanpeeth 2004Description: 128pISBN: 81-263-0188-0Subject(s): Fiction | Hindi Literature | Short StoriesDDC classification: 891.433 Summary: दर्द और दीवानगी के कुछ लम्हे ऐसे होते हैं, जिन्हें जिन्दगी का किरदार झेल नहीं पाता, लेकिन कहानी का विस्तार उसे झेल लेता है… कई बार कोई आवाज, एक कम्पन से बढ़कर कुछ नहीं कह पाती, उस बेगाना दर्द को लफ्जों में ढालना है, तो कहानीकार का भी बहुत कुछ पिघलकर उसके साथ ढलने लगता है… कहानी हर बार किसी नये कोण से दस्तक देती है… कई बार एक टूटी-सी चीख की तरह… बहुत पहले ऐसे ही कुछ एहसास भोजपत्रों को मिले होंगे और उससे भी पहले पत्थरों, शिलाओं ने कुछ लकीरों में सँभाल लिये होंगे फिर भी तब से लेकर आज तक जाने कितनी कहानियाँ बहती हुई हवा के बदन पर लिखी जाती हैं, जो वक्त से बेगाना हो जाती हैं… ये थोड़े से हरफ जो साँसों से निकलकर दामन पर गिर गये, बस वही तो हैं…Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 891.433/PRI(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 1715 |
दर्द और दीवानगी के कुछ लम्हे ऐसे होते हैं, जिन्हें जिन्दगी का किरदार झेल नहीं पाता, लेकिन कहानी का विस्तार उसे झेल लेता है… कई बार कोई आवाज, एक कम्पन से बढ़कर कुछ नहीं कह पाती, उस बेगाना दर्द को लफ्जों में ढालना है, तो कहानीकार का भी बहुत कुछ पिघलकर उसके साथ ढलने लगता है… कहानी हर बार किसी नये कोण से दस्तक देती है… कई बार एक टूटी-सी चीख की तरह… बहुत पहले ऐसे ही कुछ एहसास भोजपत्रों को मिले होंगे और उससे भी पहले पत्थरों, शिलाओं ने कुछ लकीरों में सँभाल लिये होंगे फिर भी तब से लेकर आज तक जाने कितनी कहानियाँ बहती हुई हवा के बदन पर लिखी जाती हैं, जो वक्त से बेगाना हो जाती हैं… ये थोड़े से हरफ जो साँसों से निकलकर दामन पर गिर गये, बस वही तो हैं…
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