Apni Keval Dhar

By: Kamal, ArunMaterial type: TextTextPublication details: New Delhi Vani Prakashan 1980Description: 80pSubject(s): Hindi Literature | Hindi poems | Hindi poetry | Poems | PoetryDDC classification: 891.431 Summary: *धार कौन बचा है जिसके आगे इन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जो बदल रक्त में टहल रहा है तन के कोने कोने यह कमीज जो ढाल बनी है। बारिश सरदी लू में सब उधार का, माँगा-चाहा नमक-तेल, हींग-हल्दी तक सब क़र्ज़े का यह शरीर भी उनका बन्धक अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार।
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*धार कौन बचा है जिसके आगे इन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जो बदल रक्त में टहल रहा है तन के कोने कोने यह कमीज जो ढाल बनी है। बारिश सरदी लू में सब उधार का, माँगा-चाहा नमक-तेल, हींग-हल्दी तक सब क़र्ज़े का यह शरीर भी उनका बन्धक अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार।

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