Kusumagraj ki Chuni Suni Nazmein

By: GulzarMaterial type: TextTextPublication details: New Delhi Vani Prakashan 2010Description: 128pISBN: 81-8143-598-2Subject(s): Ghazals | Hindi Literature | Nazm | Poems | Poetry | ShayariDDC classification: 891.431 Summary: विष्णु वामन शिरवाडकर 'कुसुमाग्रज' यदि मराठी काव्य और नाटक के क्षेत्र में दशकों से समादृत और अग्रगण्य रहे हैं, तो गुलज़ार हिन्दी कविता और उर्दू कहानी के साथ-साथ सिनेमा के ऐसे नवयथार्थवादी प्रतीक ठहरते हैं, जिनकी परम्परा की जड़ें कबीर और ग़ालिब से लेकर बिमल रॉय व हृषीकेश मुखर्जी तक जाती हैं। कुसुमाग्रज जहाँ एक ओर अपनी कविता द्वारा सामाजिक जीवन में अन्याय, असमानता तथा अत्याचार से उपजे विद्रूप एवं उसके आन्तरिक द्वन्द्व का चित्रण करते हैं, वहीं दूसरी ओर गुलज़ार की क़लम जीवन की बेहद मामूली चीज़ों में भी उदासी, ख़ुशी, मिलन, बिछोह, प्रेम, घृणा व दर्द की नितान्त निजी अभिव्यक्तियाँ ढूँढ़ने में उत्कर्ष पाती है। यह अकारण नहीं है कि कुसुमाग्रज के नाटकों के केन्द्र में सामान्यतः बाजीराव, झाँसी की रानी, ययाति जैसे ऐतिहासिक व मिथकीय चरित्र होते हैं और गुलज़ार की फ़िल्मों का संवेदनात्मक कौशल मीरा के चरित्र, शरतचन्द्र के उपन्यास एवं रवीन्द्रनाथ टैगोर व समरेश बसु की कहानियों से अपना आकाश विशद करता है। एक तरह से दोनों ही कला और साहित्य की सन्धि पर खड़े हुए भाषा व शब्दों का कुशल स्थापत्य रचते हैं। दोनों ही मूर्धन्यों ने अपनी सहज रचनात्मकता द्वारा, अपने सांस्कृतिक प्रदेय द्वारा तथा अपनी सूझबूझ, लय, कविता एवं विचार के द्वारा साहित्य की दुनिया को बड़ा और अद्वितीय बनाया हुआ है।
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विष्णु वामन शिरवाडकर 'कुसुमाग्रज' यदि मराठी काव्य और नाटक के क्षेत्र में दशकों से समादृत और अग्रगण्य रहे हैं, तो गुलज़ार हिन्दी कविता और उर्दू कहानी के साथ-साथ सिनेमा के ऐसे नवयथार्थवादी प्रतीक ठहरते हैं, जिनकी परम्परा की जड़ें कबीर और ग़ालिब से लेकर बिमल रॉय व हृषीकेश मुखर्जी तक जाती हैं। कुसुमाग्रज जहाँ एक ओर अपनी कविता द्वारा सामाजिक जीवन में अन्याय, असमानता तथा अत्याचार से उपजे विद्रूप एवं उसके आन्तरिक द्वन्द्व का चित्रण करते हैं, वहीं दूसरी ओर गुलज़ार की क़लम जीवन की बेहद मामूली चीज़ों में भी उदासी, ख़ुशी, मिलन, बिछोह, प्रेम, घृणा व दर्द की नितान्त निजी अभिव्यक्तियाँ ढूँढ़ने में उत्कर्ष पाती है। यह अकारण नहीं है कि कुसुमाग्रज के नाटकों के केन्द्र में सामान्यतः बाजीराव, झाँसी की रानी, ययाति जैसे ऐतिहासिक व मिथकीय चरित्र होते हैं और गुलज़ार की फ़िल्मों का संवेदनात्मक कौशल मीरा के चरित्र, शरतचन्द्र के उपन्यास एवं रवीन्द्रनाथ टैगोर व समरेश बसु की कहानियों से अपना आकाश विशद करता है। एक तरह से दोनों ही कला और साहित्य की सन्धि पर खड़े हुए भाषा व शब्दों का कुशल स्थापत्य रचते हैं। दोनों ही मूर्धन्यों ने अपनी सहज रचनात्मकता द्वारा, अपने सांस्कृतिक प्रदेय द्वारा तथा अपनी सूझबूझ, लय, कविता एवं विचार के द्वारा साहित्य की दुनिया को बड़ा और अद्वितीय बनाया हुआ है।

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