Manikarnika
Material type: TextPublication details: New Delhi Rajkamal Paperbacks 2014Description: 208pISBN: 978-81-267-2627-1Subject(s): Autobiography | Dr Tulsiram | Hindi Literature | MemoirDDC classification: 928 Summary: ‘मणिकर्णिका’ डॉ. तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड है ! पहला खंड ‘मुर्दहिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ! यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि ‘मुर्दहिया’ को हिंदी जगत की महत्तपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया गया ! साहित्य और समाज विज्ञान से जुड़े पाठकों, आलोचकों व् शोधकर्ताओं ने इस रचना के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया ! शीर्षस्थ आलोचक डॉ. नामवर सिंह के अनुसार ग्रामीण जीवन का जो जिवंत वर्णन ‘मुर्दहिया’ में है, वैसा प्रेमचंद की रचनाओ में भी नहीं मिलता ! ‘मणिकर्णिका’ में ‘मुर्दहिया’ के आगे का जीवन है ! आजमगढ़ से निकलकर लेखक ने करीब 10 साल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिताये ! बनारस में आने पर जीवन के अंत की प्रतीक ‘मणिकर्णिका’ से ही लेखक का जैसे नया जीवन शुरू हुआ ! लेखक के शब्दों में ‘गंगा के घाटों तथा बनारस के मंदिरों से जो यात्रा शुरू हुई थी, अन्ततोगत्वा वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में समाप्त हो गई ! मार्क्सवाद ने मुझे विश्वदृष्टि प्रदान की, जिसके चलते मेरा व्यक्तिगत दुःख दुनिया के दुःख में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठा ! मुर्दहिया में जो विचार सुप्त अवस्था में थे, वे मणिकर्णिका में विकसित हुए !’ लेखक ने अपने जीवनानुभवों का वर्णन करते हुए उस खास समय को भी विश्लेषित किया है जिसके भीतर प्रवृत्तियों का सघन संघर्ष चल रहा था ! बनारस जैसे इस कृति के पृष्ठों पर जीवन हो उठा है ! इस स्मृति-आख्यान में कलकत्ता भी है, अनेक वैचारिक संधार्भों के साथ ! ‘मणिकर्णिका; डॉ. तुलसी राम के जीवन-संघर्ष की ऐसी महागाथा है जिसमें भारतीय समाज की अनेक संरचनाएँ स्वतः उद्घाटित होती जाती हैं !Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 928/TUL(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 1669 |
‘मणिकर्णिका’ डॉ. तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड है ! पहला खंड ‘मुर्दहिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ! यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि ‘मुर्दहिया’ को हिंदी जगत की महत्तपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया गया ! साहित्य और समाज विज्ञान से जुड़े पाठकों, आलोचकों व् शोधकर्ताओं ने इस रचना के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया ! शीर्षस्थ आलोचक डॉ. नामवर सिंह के अनुसार ग्रामीण जीवन का जो जिवंत वर्णन ‘मुर्दहिया’ में है, वैसा प्रेमचंद की रचनाओ में भी नहीं मिलता ! ‘मणिकर्णिका’ में ‘मुर्दहिया’ के आगे का जीवन है ! आजमगढ़ से निकलकर लेखक ने करीब 10 साल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिताये ! बनारस में आने पर जीवन के अंत की प्रतीक ‘मणिकर्णिका’ से ही लेखक का जैसे नया जीवन शुरू हुआ ! लेखक के शब्दों में ‘गंगा के घाटों तथा बनारस के मंदिरों से जो यात्रा शुरू हुई थी, अन्ततोगत्वा वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में समाप्त हो गई ! मार्क्सवाद ने मुझे विश्वदृष्टि प्रदान की, जिसके चलते मेरा व्यक्तिगत दुःख दुनिया के दुःख में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठा ! मुर्दहिया में जो विचार सुप्त अवस्था में थे, वे मणिकर्णिका में विकसित हुए !’ लेखक ने अपने जीवनानुभवों का वर्णन करते हुए उस खास समय को भी विश्लेषित किया है जिसके भीतर प्रवृत्तियों का सघन संघर्ष चल रहा था ! बनारस जैसे इस कृति के पृष्ठों पर जीवन हो उठा है ! इस स्मृति-आख्यान में कलकत्ता भी है, अनेक वैचारिक संधार्भों के साथ ! ‘मणिकर्णिका; डॉ. तुलसी राम के जीवन-संघर्ष की ऐसी महागाथा है जिसमें भारतीय समाज की अनेक संरचनाएँ स्वतः उद्घाटित होती जाती हैं !
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