Upanishadon ki Kahaniyan
Material type: TextPublication details: New Delhi NBT, India 2011Description: 188pISBN: 978-8123705316Subject(s): Hindi Literature | UpanishadDDC classification: 294.592 Summary: वेद, पुराण, उपनिषद् आदि ऐसे सांसारिक ग्रन्थ हैं, जिनसे सदियों से हमारी सभ्यता के विकास का सम्यक् रूप संकलित है। प्राचीन काल की व्यक्ति कथा भी किस्सागोई के संयोग से कालांतर से विचित्र स्वरूप में आ गयी और भी ये ही सारी बातें बाद में दंतकथा, पुराणकथा, उपनिषद्-कथा और मिथक के रूप में जानी गयीं। आज का साहित्य पुराने मिथक की नयी व्याख्या करने लगा है। प्रस्तुत पुस्तक उपनिषदों की कहानियों की नयी व्याख्या करती है। इनमें न केवल कहानियों का हू-ब-हू अनुवाद प्रस्तुत किया गया है, बल्कि जगह-ब-जगह उसकी कथा-उपकथा की खूबी-खामी की ओर संकेत करते हुए काफी मनोरंजक व्याख्या भी की गयी है। यह व्याख्या जहाँ एक ओर सामान्य पाठक का उपनिषद् की कहानियों से परिचय कराती है वहीं दूसरी ओर सदियों से व्याप्त वर्ग व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था की विरूपता पर व्यंग्य भी प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक के प्रस्तोता भगवान सिंह (जन्म 1931) हैं। इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं- राम (कविता संकलन) काले उजले टीले, महाभिषग, अपने-अपने राम (उपन्यास), आर्य द्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता, हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य (शोध ग्रन्थ)।Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 294.592/SIN(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 1574 |
वेद, पुराण, उपनिषद् आदि ऐसे सांसारिक ग्रन्थ हैं, जिनसे सदियों से हमारी सभ्यता के विकास का सम्यक् रूप संकलित है। प्राचीन काल की व्यक्ति कथा भी किस्सागोई के संयोग से कालांतर से विचित्र स्वरूप में आ गयी और भी ये ही सारी बातें बाद में दंतकथा, पुराणकथा, उपनिषद्-कथा और मिथक के रूप में जानी गयीं। आज का साहित्य पुराने मिथक की नयी व्याख्या करने लगा है। प्रस्तुत पुस्तक उपनिषदों की कहानियों की नयी व्याख्या करती है। इनमें न केवल कहानियों का हू-ब-हू अनुवाद प्रस्तुत किया गया है, बल्कि जगह-ब-जगह उसकी कथा-उपकथा की खूबी-खामी की ओर संकेत करते हुए काफी मनोरंजक व्याख्या भी की गयी है। यह व्याख्या जहाँ एक ओर सामान्य पाठक का उपनिषद् की कहानियों से परिचय कराती है वहीं दूसरी ओर सदियों से व्याप्त वर्ग व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था की विरूपता पर व्यंग्य भी प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक के प्रस्तोता भगवान सिंह (जन्म 1931) हैं। इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं- राम (कविता संकलन) काले उजले टीले, महाभिषग, अपने-अपने राम (उपन्यास), आर्य द्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता, हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य (शोध ग्रन्थ)।
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