Charkhe par Badhat

By: Vajpeyi, UdayanMaterial type: TextTextPublication details: Rajkamal Prakashan Description: 175pISBN: 8171787614Subject(s): Fiction | Hindi LiteratureDDC classification: 891.433 Summary: उदयन वाजपेयी के ये निबन्ध हिन्दी में निबन्ध के 'अनाख्यानकाल' के प्रारम्भ का नान्दी-पाठ हैं । यह शब्द मदन सोनी का है जिसका इस्तेमाल उदयन ने 'समय की छवियाँ' शीर्षक निबन्ध में भी किया है किन्तु मदन सोनी और उदयन के प्रयोगों से मुअत्तर इस शब्द से मैं वह भी झलकाना चाहता हूँ जो 'आदि-काल, 'गीतिकाल', 'साठोत्तरी कविता', 'कविता की वापसी' जैसी घोषणाओं में, हिन्दी आलोचना का एक प्रिय कर्तव्य रहा है । इन निबन्धों में साहित्य और कला के अतिरिक्त जीवन की बहुत-सी बातें हैं, श्रीकान्त वर्मा, स्वामीनाथन और मिलान कुन्देरा के साथ-साथ रसोईघर और पाठ्‌य-पुस्तक भी हैं । इन्हें 'साहित्यिक', 'विचारात्मक', 'समीक्षात्मक' आदि की कोटियों में बाँटने की कोशिश करते समय मुझे जौ शीर्षक सूझने लगे, वे अ इस प्रकार के थे-'रसोईघर में मिलान कुचेरा, 'श्रीकान्त वर्मा की अलिखी किताब के अक्षर', 'स्वामीनाथन के चरखे पर एक बढ़त' आदि । मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ कि महात्मा गाँधी की बात हो या फणीश्वर नाथ 'रेणु' की, आप किसी भी रसोईघर में और किसी भी किताब में जाते-आते यह देख लें कि उदयन के ये निबन्ध इधर से गुजरे हैं कि नहीं तो अच्छा ही रहेगा । क्योंकि इनमें अर्थ का एक 'बेगानापन' है । -वागीश शुक्ल
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उदयन वाजपेयी के ये निबन्ध हिन्दी में निबन्ध के 'अनाख्यानकाल' के प्रारम्भ का नान्दी-पाठ हैं । यह शब्द मदन सोनी का है जिसका इस्तेमाल उदयन ने 'समय की छवियाँ' शीर्षक निबन्ध में भी किया है किन्तु मदन सोनी और उदयन के प्रयोगों से मुअत्तर इस शब्द से मैं वह भी झलकाना चाहता हूँ जो 'आदि-काल, 'गीतिकाल', 'साठोत्तरी कविता', 'कविता की वापसी' जैसी घोषणाओं में, हिन्दी आलोचना का एक प्रिय कर्तव्य रहा है । इन निबन्धों में साहित्य और कला के अतिरिक्त जीवन की बहुत-सी बातें हैं, श्रीकान्त वर्मा, स्वामीनाथन और मिलान कुन्देरा के साथ-साथ रसोईघर और पाठ्‌य-पुस्तक भी हैं । इन्हें 'साहित्यिक', 'विचारात्मक', 'समीक्षात्मक' आदि की कोटियों में बाँटने की कोशिश करते समय मुझे जौ शीर्षक सूझने लगे, वे अ इस प्रकार के थे-'रसोईघर में मिलान कुचेरा, 'श्रीकान्त वर्मा की अलिखी किताब के अक्षर', 'स्वामीनाथन के चरखे पर एक बढ़त' आदि । मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ कि महात्मा गाँधी की बात हो या फणीश्वर नाथ 'रेणु' की, आप किसी भी रसोईघर में और किसी भी किताब में जाते-आते यह देख लें कि उदयन के ये निबन्ध इधर से गुजरे हैं कि नहीं तो अच्छा ही रहेगा । क्योंकि इनमें अर्थ का एक 'बेगानापन' है । -वागीश शुक्ल

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