Shahar aur Cinema via Delhi

By: Pandya, MihirMaterial type: TextTextPublication details: Vani Prakashan 2010ISBN: 978-9350008416Subject(s): Delhi | Hindi Literature | New DelhiDDC classification: 954.56 Summary: ‘जब हम रोज़गार के लिए नगरों में जा रहे हैं तो भीड़, दुर्घटना, प्रदूषण होगा और पसीने से तरबतर स्त्रियाँ बस के लिए भागती हुई जरूर मिलेंगी। कृपया शहर के भीतर जाइए। जब तक विचार की जगह बाज़ार रहेगा दिल्ली के जनपथ पर चिलगोजे़ मिलते रहेंगे। नगर के वास्तविक हादसे की तरफ हमारा ध्यान नहीं है। वास्तव में हम एक नर्क से दूसरे नर्क में यात्रा करते हैं लेकिन यह सच्चाई को न जानकर एक फर्क अपनी सोच में पैदा करते हैं... लगता है कि लोग शहरों पर पिल पड़े हैं। हमें नगर के बारे में अब गहरी तैयारी और सघन सूझ-बूझ से लिखना होगा जिसमें समूचे मुल्क के भीतरी परिवर्तन शामिल होंगे। हम प्रचलित घड़ियों में समय देखना बन्द कर दें अन्यथा गलत समय का पता मिलेगा... जब आप मीनमेख कर रहे होते हैं, कोसते रहते हैं, उस समय मत भूलिए कि शहर को असंख्य लोग प्यार करते होते हैं। असंख्य लोग उसी शहर में पनाह लेते होते हैं। ये ही लोग होते हैं जो नगरों को बचाते हैं।’’
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‘जब हम रोज़गार के लिए नगरों में जा रहे हैं तो भीड़, दुर्घटना, प्रदूषण होगा और पसीने से तरबतर स्त्रियाँ बस के लिए भागती हुई जरूर मिलेंगी। कृपया शहर के भीतर जाइए। जब तक विचार की जगह बाज़ार रहेगा दिल्ली के जनपथ पर चिलगोजे़ मिलते रहेंगे। नगर के वास्तविक हादसे की तरफ हमारा ध्यान नहीं है। वास्तव में हम एक नर्क से दूसरे नर्क में यात्रा करते हैं लेकिन यह सच्चाई को न जानकर एक फर्क अपनी सोच में पैदा करते हैं... लगता है कि लोग शहरों पर पिल पड़े हैं। हमें नगर के बारे में अब गहरी तैयारी और सघन सूझ-बूझ से लिखना होगा जिसमें समूचे मुल्क के भीतरी परिवर्तन शामिल होंगे। हम प्रचलित घड़ियों में समय देखना बन्द कर दें अन्यथा गलत समय का पता मिलेगा... जब आप मीनमेख कर रहे होते हैं, कोसते रहते हैं, उस समय मत भूलिए कि शहर को असंख्य लोग प्यार करते होते हैं। असंख्य लोग उसी शहर में पनाह लेते होते हैं। ये ही लोग होते हैं जो नगरों को बचाते हैं।’’

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