Umra Se Lambi Sadakon Par: Gulzar

By: Khaitan, BinodMaterial type: TextTextPublication details: Vani Prakashan 2012Description: 408pISBN: 978-9350723951Subject(s): Gulzar | Hindi Literature | Hindi poems | Hindi poetry | Poems | PoetryDDC classification: 891.431 Summary: फिल्मों ने गुलज़ार को शोहरत दी, लेकिन इसी वजह से उनके गीतों में अंतर्निहित काव्य-तत्त्व के साथ न्याय नहीं हो सका। आम तौर पर फिल्मी दुनिया को सन्देह से देखने वाली समीक्षा-दृष्टि ने यह समझने की ज़हमत नहीं उठाई कि गुलज़ार की कविता चाहे जिस संदर्भ से पैदा होती हो, उसमें हमारे वक़्त के साये दिखते हैं, हमारे ज़माने की परछाइयाँ बनती हैं। रूपक-मेटाफ़र का इस्तेमाल गुलज़ार की वह ताक़त है जो भारतीय भाषाओं के बड़े कवियों के बीच उनकी जगह बनाती है। वे कभी अमृता प्रीतम की याद दिलाते हैं, कभी साहिर को आगे बढ़ाते हैं, कभी शैलेन्द्र की सादगी का आभास देते हैं। उनकी कविता कभी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की तरह संसार की साधारण स्थितियों को अद्भुत और असाधारण बनाती है, कभी ग़ालिब के मुख़्तसर मिसरों की तरह ज़िन्दगी की जटिलताओं को जुबान देती है और कभी विनोद कुमार शुक्ल की तरह महीन रास्तों पर जाती है। उनके गीतों को समझना अपनी कविता के संसार को कुछ और समृद्ध करना है। इस गुलज़ार को संजीदगी से लेने की, मुकम्मल तौर पर समझने की ज़रूरत है और यह किताब ये काम बख़ूबी करती है।
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फिल्मों ने गुलज़ार को शोहरत दी, लेकिन इसी वजह से उनके गीतों में अंतर्निहित काव्य-तत्त्व के साथ न्याय नहीं हो सका। आम तौर पर फिल्मी दुनिया को सन्देह से देखने वाली समीक्षा-दृष्टि ने यह समझने की ज़हमत नहीं उठाई कि गुलज़ार की कविता चाहे जिस संदर्भ से पैदा होती हो, उसमें हमारे वक़्त के साये दिखते हैं, हमारे ज़माने की परछाइयाँ बनती हैं। रूपक-मेटाफ़र का इस्तेमाल गुलज़ार की वह ताक़त है जो भारतीय भाषाओं के बड़े कवियों के बीच उनकी जगह बनाती है। वे कभी अमृता प्रीतम की याद दिलाते हैं, कभी साहिर को आगे बढ़ाते हैं, कभी शैलेन्द्र की सादगी का आभास देते हैं। उनकी कविता कभी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की तरह संसार की साधारण स्थितियों को अद्भुत और असाधारण बनाती है, कभी ग़ालिब के मुख़्तसर मिसरों की तरह ज़िन्दगी की जटिलताओं को जुबान देती है और कभी विनोद कुमार शुक्ल की तरह महीन रास्तों पर जाती है। उनके गीतों को समझना अपनी कविता के संसार को कुछ और समृद्ध करना है। इस गुलज़ार को संजीदगी से लेने की, मुकम्मल तौर पर समझने की ज़रूरत है और यह किताब ये काम बख़ूबी करती है।

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