Vichar ka Dar

By: Kumar, KrishnaMaterial type: TextTextPublication details: Rajkamal Prakashan 2019Description: 138pISBN: 978-8171785155Subject(s): Culture | Essays | Hindi Literature | SocietyDDC classification: 327.54 Summary: हिंदी गद्य का स्वरूप साठ के दशक में बदलना शुरू हो चुका था। सत्तर के दशक में यह बदलाव कई विधाओं में प्रकट हुआ। लोकतांत्रिक चेतना के फैलाव से पैदा हुए तनावों के अलावा शिक्षा और संचार के आधुनिक माध्यमों का विस्तार गद्य को जिज्ञासा और समझ की नई ज़मीनें तोडऩे के लिए तैयार कर रहा था। इस विकास को कुंठित करनेवाली ताकतें—अंग्रेज़ी की चौधराई, राज्याश्रित हिंदी की राजनीति और उत्तर के समाज में फैली सामंती प्रवृत्तियाँ भी पोषण पा रही थीं; विचार का डर हमें इन ताकतों को समझने में मदद दे सकता है। इस पुस्तक में संकलित पद्य पिछले दो दशकों में प्रकाशित कृष्ण कुमार की वैचारिक रचनाशीलता की बानगी तो देता ही है, इस समूचे दौर की गतिशील प्रवृत्तियों का बिंब भी प्रस्तुत करता है। विषयों की दृष्टि से ये लेख, निबंध और संस्मरण हिंदी समाज के सरोकारों का पैमाना कहे जा सकते हैं। अर्थ और राजनीति से लेकर साहित्य, संचार और मनोरंजन के तेज़ी से बदलते हुए ढाँचों के बीच तकनीक, भाषा, फिल्म-संगीत, स्त्री, सांप्रदायिक हिंसा और पत्रकारिता जैसे संदर्भों की जाँच इस कृति को एक नई तरह का, बहुत फैला हुआ पाठक समुदाय देती है।.
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हिंदी गद्य का स्वरूप साठ के दशक में बदलना शुरू हो चुका था। सत्तर के दशक में यह बदलाव कई विधाओं में प्रकट हुआ। लोकतांत्रिक चेतना के फैलाव से पैदा हुए तनावों के अलावा शिक्षा और संचार के आधुनिक माध्यमों का विस्तार गद्य को जिज्ञासा और समझ की नई ज़मीनें तोडऩे के लिए तैयार कर रहा था। इस विकास को कुंठित करनेवाली ताकतें—अंग्रेज़ी की चौधराई, राज्याश्रित हिंदी की राजनीति और उत्तर के समाज में फैली सामंती प्रवृत्तियाँ भी पोषण पा रही थीं; विचार का डर हमें इन ताकतों को समझने में मदद दे सकता है। इस पुस्तक में संकलित पद्य पिछले दो दशकों में प्रकाशित कृष्ण कुमार की वैचारिक रचनाशीलता की बानगी तो देता ही है, इस समूचे दौर की गतिशील प्रवृत्तियों का बिंब भी प्रस्तुत करता है। विषयों की दृष्टि से ये लेख, निबंध और संस्मरण हिंदी समाज के सरोकारों का पैमाना कहे जा सकते हैं। अर्थ और राजनीति से लेकर साहित्य, संचार और मनोरंजन के तेज़ी से बदलते हुए ढाँचों के बीच तकनीक, भाषा, फिल्म-संगीत, स्त्री, सांप्रदायिक हिंसा और पत्रकारिता जैसे संदर्भों की जाँच इस कृति को एक नई तरह का, बहुत फैला हुआ पाठक समुदाय देती है।.

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