Tasveer

By: Gogol, NikolaiMaterial type: TextTextPublication details: Gargi Prakashan 1961Description: 172pISBN: 978-0811201209Subject(s): Fiction | Hindi LiteratureDDC classification: 891.433 Summary: गार्गी प्रकाशन की ओर से हिन्दी के सुधि–पाठकों को विश्व–साहित्य की अनमोल धरोहर से परिचित कराने के क्रम में हम गोगोल की सुप्रसिद्ध कहानी -- ‘तस्वीर’ का प्रकाशन कर रहे हैं। इस कहानी के केन्द्र में एक दुष्ट सूदखोर की तस्वीर है, जिसे चित्रकार ने निर्मम अलगाव और बिना किसी सहानुभूति के बनाया था। स्वयं चित्रकार के शब्दों में: ‘‘मैंने उसका चित्र घोर अरुचि से बनाया था और मुझे अपने काम के प्रति तनिक भी आकर्षण नहीं था। मैंने अपनी भावनाओं को दबाने की और मेरी आत्मा में जो घृणा थी उसका दमन करके उसका वैसा ही चित्र बनाने की चेष्टा की जैसा कि वह जीवन में सचमुच था। वह कोई कलाकृति नहीं थी, और यही कारण है कि जो लोग भी उसे देखते हैं वे जिन भावनाओं से प्रभावित होते हैं वे बैचेन, परेशान भावनाएँ होती हैं। कलाकार की भावनाएँ नहीं होतीं ...’’ यह तस्वीर सबसे पहले अपने रचनाकार के लिए ही अनिष्टकारी साबित होती है। जिसका आभास होने पर चित्रकार उसे अपने पास से हटा देता है। बाद में घोर पश्चाताप और प्रायश्चित के बाद ही, वह उस दुरात्मा के कुप्रभाव से मुक्त होता है और अपनी आत्मा को निष्कलंक और मन को निर्मल बना पाता है। आगे चलकर वह तस्वीर एक आदमी से दूसरे आदमी के पास पहुँचती है और उनके मन में बेचैनी पैदा करती है तथा लोगों के हृदय में दूसरों के प्रति घृणा, ईर्ष्या और उत्पीड़ित करने की दुष्टतापूर्ण इच्छा पैदा करती है। इस तस्वीर के विनाशकारी प्रभाव के चलते इस कहानी के केन्द्रीय चरित्र, एक प्रतिभावान युवा चित्रकार का अधोपतन होता है और अन्तत: उसकी जिन्दगी तबाह हो जाती है।
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गार्गी प्रकाशन की ओर से हिन्दी के सुधि–पाठकों को विश्व–साहित्य की अनमोल धरोहर से परिचित कराने के क्रम में हम गोगोल की सुप्रसिद्ध कहानी -- ‘तस्वीर’ का प्रकाशन कर रहे हैं। इस कहानी के केन्द्र में एक दुष्ट सूदखोर की तस्वीर है, जिसे चित्रकार ने निर्मम अलगाव और बिना किसी सहानुभूति के बनाया था। स्वयं चित्रकार के शब्दों में: ‘‘मैंने उसका चित्र घोर अरुचि से बनाया था और मुझे अपने काम के प्रति तनिक भी आकर्षण नहीं था। मैंने अपनी भावनाओं को दबाने की और मेरी आत्मा में जो घृणा थी उसका दमन करके उसका वैसा ही चित्र बनाने की चेष्टा की जैसा कि वह जीवन में सचमुच था। वह कोई कलाकृति नहीं थी, और यही कारण है कि जो लोग भी उसे देखते हैं वे जिन भावनाओं से प्रभावित होते हैं वे बैचेन, परेशान भावनाएँ होती हैं। कलाकार की भावनाएँ नहीं होतीं ...’’ यह तस्वीर सबसे पहले अपने रचनाकार के लिए ही अनिष्टकारी साबित होती है। जिसका आभास होने पर चित्रकार उसे अपने पास से हटा देता है। बाद में घोर पश्चाताप और प्रायश्चित के बाद ही, वह उस दुरात्मा के कुप्रभाव से मुक्त होता है और अपनी आत्मा को निष्कलंक और मन को निर्मल बना पाता है। आगे चलकर वह तस्वीर एक आदमी से दूसरे आदमी के पास पहुँचती है और उनके मन में बेचैनी पैदा करती है तथा लोगों के हृदय में दूसरों के प्रति घृणा, ईर्ष्या और उत्पीड़ित करने की दुष्टतापूर्ण इच्छा पैदा करती है। इस तस्वीर के विनाशकारी प्रभाव के चलते इस कहानी के केन्द्रीय चरित्र, एक प्रतिभावान युवा चित्रकार का अधोपतन होता है और अन्तत: उसकी जिन्दगी तबाह हो जाती है।

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