Kahani ki Talash Mein
Material type: TextPublication details: Rajkamal Prakashan 2005Description: 131pISBN: 81-267-0673-2Subject(s): Fiction | Hindi LiteratureDDC classification: 891.433 Summary: अलका सरावगी की कहानी-यात्रा कोई आयोजित भ्रमण नहीं है, यह जानने और जताने की है कि कैसे कोई कहानी के संसार की यात्रा शुरू कर देता है तो उसे पग-पग पर कहानियाँ मिलती रहती हैं। हाँ, इस मिलने में तलाशना जुड़ा है, मिलना सहज संयोग नहीं। लेखिका को सुंदरता और परिपूर्ण जीवन की तलाश है और उसी की तलाश में वह कहानी पा लेती है - इसमें वह ऐसी सृजनात्मकता का वरण करती है जो सहज है पर जिसमें जटिलताओं का नकार नहीं। संग्रह की दो कहानियाँ कहानी की तलाश में और हर शै बदलती है समकालीन हिन्दी कहानी के ढर्रे से कुछ अलग हैं, पर वे जैनेन्द्र कुमार और रघुवीर सहाय जैसे पूर्ववर्ती लेखकों की कहानियों की भी याद दिलाती हैं। इन कहानियों को जीवन की कहानियाँ कहने को मन करता है - रोजमर्रा की जिं़दगी का मतलब एक पिटी- पिटाई और ढर्रे की जिं़दगी नहीं होता, आखि़र हर दिन एक नया दिन भी होता है। यह एहसास कहानियाँ करवाती हैं जो निश्चय ही आज एक अत्यंत विरल अनुभव है। कहानियों में कुछ चरित्र-प्रधान हैं लेकिन उनका मर्म किसी चरित्र के मनोवैज्ञानिक उद्घाटन के बजाय ‘आधुनिकतावादी’ जीवन की संवेदनहीनता और विसंगतियों को उजागर करने में ज्यादा प्रकट है। ऐसी कहानियों में ‘आपकी हँसी’, ‘खि़जाब’, ‘महँगी किताब’, ‘संभ्रम’ की याद आती है। ये कहानियाँ हिंदी कहानी की अमित संभावनाओं को प्रकट करती हैं और यह कोई कम बड़ी बात नहीं।Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Books | Ektara Trust | 891.433/SAR(H) (Browse shelf(Opens below)) | Available | 1105 |
अलका सरावगी की कहानी-यात्रा कोई आयोजित भ्रमण नहीं है, यह जानने और जताने की है कि कैसे कोई कहानी के संसार की यात्रा शुरू कर देता है तो उसे पग-पग पर कहानियाँ मिलती रहती हैं। हाँ, इस मिलने में तलाशना जुड़ा है, मिलना सहज संयोग नहीं। लेखिका को सुंदरता और परिपूर्ण जीवन की तलाश है और उसी की तलाश में वह कहानी पा लेती है - इसमें वह ऐसी सृजनात्मकता का वरण करती है जो सहज है पर जिसमें जटिलताओं का नकार नहीं। संग्रह की दो कहानियाँ कहानी की तलाश में और हर शै बदलती है समकालीन हिन्दी कहानी के ढर्रे से कुछ अलग हैं, पर वे जैनेन्द्र कुमार और रघुवीर सहाय जैसे पूर्ववर्ती लेखकों की कहानियों की भी याद दिलाती हैं। इन कहानियों को जीवन की कहानियाँ कहने को मन करता है - रोजमर्रा की जिं़दगी का मतलब एक पिटी- पिटाई और ढर्रे की जिं़दगी नहीं होता, आखि़र हर दिन एक नया दिन भी होता है। यह एहसास कहानियाँ करवाती हैं जो निश्चय ही आज एक अत्यंत विरल अनुभव है। कहानियों में कुछ चरित्र-प्रधान हैं लेकिन उनका मर्म किसी चरित्र के मनोवैज्ञानिक उद्घाटन के बजाय ‘आधुनिकतावादी’ जीवन की संवेदनहीनता और विसंगतियों को उजागर करने में ज्यादा प्रकट है। ऐसी कहानियों में ‘आपकी हँसी’, ‘खि़जाब’, ‘महँगी किताब’, ‘संभ्रम’ की याद आती है। ये कहानियाँ हिंदी कहानी की अमित संभावनाओं को प्रकट करती हैं और यह कोई कम बड़ी बात नहीं।
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