Jal Thal Mal (Record no. 4783)
[ view plain ]
000 -LEADER | |
---|---|
fixed length control field | 04201nam a2200193Ia 4500 |
008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
fixed length control field | 220824s9999 xx 000 0 und d |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 978-93-88183-36-9 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 363.72 |
Item number | JOS |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Joshi, Sopan. |
245 #0 - TITLE STATEMENT | |
Title | Jal Thal Mal |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Name of publisher, distributor, etc | Rajkamal Prakashan |
Date of publication, distribution, etc | 2018 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 210p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc | हर प्राणी प्रकृति के अपार रसों का एक संग्रह होता है। मिट्टी, पानी और हवा के उर्वरकों का एक गठबन्धन। फिर चाहे वह एक कोशिका वाला बैक्टीरिया हो या विराटाकार नीला व्हेल। जब किसी जीव की मृत्यु होती है, तब यह रचना टूट जाती है। सभी रस और उर्वरक अपने मूल स्वरूप में लौट जाते हैं, फिर दूसरे जीवी को जन्म देते हैं। हर प्राणी सभी रसों का उपयोग नहीं कर सकता। हर जीव जितना हिस्सा भोग सकता है उतना भोगता है, जो नहीं पुसाता उसे त्याग देता है। यही ‘कचरा’ या ‘अपशिष्ट’ दूसरे जीवों के लिए ‘संसाधन’ बन जाता है, किसी और के काम आता है। दूसरे जीवों से लेन-देन किए बिना कोई भी प्राणी जी नहीं सकता। हम भी नहीं। प्रकृति में कुछ भी कूड़ा-करकट नहीं होता। न कचरा, न मैला, न अपशिष्ट ही। हमारा भोजन मिट्टी से आता है। प्रकृति का नियम है कि मिट्टी से निकले रस वापस मिट्टी में जाने चाहिए। जहाँ का माल है, वहीं लौटना चाहिए। हम जो भी खाते हैं, वह अगले दिन मल-मूत्र बन के हमारे शरीर से निकल जाता है। सहज रूप में उसका संस्कार मिट्टी में ही होना चाहिए। खाद्य पदार्थ की फिर से खाद बननी चाहिए। किन्तु आधुनिक स्वच्छता व्यवस्था हमारे मल-मूत्र को पानी में डालने लगी है। इससे हमारे जल-स्रोत दूषित हो रहे हैं, मिट्टी बंजर हो रही है। हमारा मल-मूत्र भी चौगुना हुआ है। लेकिन उसे ठिकाने लगाने के तरीक़े चौगुने नहीं हुए हैं। हमारी स्वच्छता आज प्रकृति के साथ युद्ध बन चुकी है। यह किताब जल-थल-मल के इस बिगड़ते रिश्ते को क़ुदरत की नज़र से देखती है। इसमें उन लोगों का भी वर्णन है जिनके लिए सफ़ाई प्रकृति को बिगाड़ने का नहीं, निखारने का तरीक़ा है। उनकी स्वच्छता में शुचिता है, सामाजिकता है। जल, थल और मल का सुगम संयोग है। |
546 ## - LANGUAGE NOTE | |
Language note | Hindi |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name as entry element | Environment |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name as entry element | Sanitation |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name as entry element | Science |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Item type | Books |
Koha issues (borrowed), all copies | 1 |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Permanent location | Current location | Date acquired | Cost, normal purchase price | Total Checkouts | Full call number | Barcode | Date last seen | Date last borrowed | Koha item type |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Ektara Trust | Ektara Trust | 194.35 | 1 | 363.72/JOS(H) | 4293 | 05/06/2023 | 05/06/2023 | Books |